नजरो में हमने अपनी , एक तस्वीर बसाई थी जिनकी
वो छोड़ गए तनहा अब हमको , यह प्रीत लगाई थी जिनकी
राहो में खुशबू थी बिखरी , जहा जहा से गुजरे थे वो
अब तो बस यादे है उनकी , यह राह बनाई थी जिनकी
थे कभी रौशन गुलिस्ताँ ,आज है बिरानी का आलम
उनसे अब रूठा है गुलशन , यह गुलज़ार लगाई थी जिनकी
कभी सपनो की बस्ती में भी , था अरमानो का महल हमारा
जल गए अरमां सब उनमे , यह आग लगाई थी जिनकी
उठती थी इस दिल में भी , उमंगो की कुछ ऊंची लहरे
अब तो पल पल टूटे धड़कन , कभी दिल में बसाई थी जिनकी
देख यू ही किस्मत को अपनी , हम भी थे कुछ इतरा जाते
अब नही मिटती लकीरे , कभी हाथो से मिलाई थी जिनकी
थे बसे नस नस में मेरे , अब निकले यह जान है
ले गए हर साँस हमारी , कभी अपनी बनाई थी जिनकी
न देखा था हमने कभी , जख्मो को यू बनते नासूर
अब तो उनमे ही मरहम है , यह चोट लगाई थी जिनकी
कर गुजरा था कुछ भी मे , बिन समझे उनके इशारे
अब तो बस लटका हू उसमे , यह सलीब बनाई थी जिनकी
नजरो में हमने अपनी , एक तस्वीर बसाई थी जिनकी
वो छोड़ गए तनहा अब हमको , यह प्रीत लगाई थी जिनकी
Thursday, April 2, 2009
वो छोड़ गए तनहा अब हमको , यह प्रीत लगाई थी जिनकी
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