Monday, July 13, 2009

कभी कभी दिल से बहती है, अश्को की एक लम्बी धारा...

कभी कभी दिल से बहती है, अश्को की एक लम्बी धारा
कैसे दिखाऊ मै तुमको वो दरिया जिसका नहो कोई किनारा

जबसे मुझसे रूठ गई तुम, हँसी नही होठो पे यारा
एक तुम ही थी हमदम मेरी, नजरो का तुम थी नजारा

कभी कभी मुझपर हंसती है, मेरी किस्मत कह मुझको बेचारा
कैसे बताऊ मै तुमको, कैसे हू मै ख़ुद से हारा

जहा तुम मुझको छोड़ गई थी, वही खड़ा हू अबतक यारा
तुमसे ही जन्नत थी मेरी, तुम ही थी जीने का सहारा

कभी कभी सीने मे जलती है, यादो की बुझती शरारह [sharaarah =chingaari]
कैसे समझाऊ मै तुमको, की तुम बिन नही अब मेरा गुजारा

जो तुम मुझको दिखा गई थी, अब नही दिखता वो सितारा
तुमसे ही रौशन थी नजरे, तुम ही थी मेरी बातो का इशारा

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