Thursday, June 4, 2009

खुशनुमा जमीं, बेदाग़ फलक, सपनो की अब बातें है

आने वाले समय की कल्पना कर मैंने प्राकृति पर कुछ पंक्तिया लिखने की कोशिश की है , उम्मीद करता हू कि जो जैसा लिखा है वैसा कभी न हो ...

खुशनुमा जमीं, बेदाग़ फलक, सपनो की अब बातें है
बरसो हुए चांदनी देखे , अब तो काली रातें है
काट चुका हू लाखो साख, और काट रहा हू मै
गुनाहगारों की इस दुनिया मे , मर मर जी रहा हू मै

सावन कई बीत गए , पर बदरा नही छाते है
किस्से और कहानियो मे ही, होती अब बरसाते है
नदिया सारी सूख चुकी , अब सागर सुखा रहा हू मै
गुनाहगारों की इस दुनिया मे , मर मर जी रहा हू मै

बाग़ है सूने सूने , सूने मौसम हुए जाते है
धूल और धुए मे ही , मिलती अब सौगाते है
पंछी सारे मार चुका , अब पशुए मार रहा हू मै
गुनाहगारों की इस दुनिया मे , मर मर जी रहा हू मै

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