Sunday, March 8, 2009

कि काश कभी मै इन्सां नही होता ...

दर्द ही दर्द है इस जहाँ मे सब ओर ,
बहते है आँसू मेरे जब रोए कोई ओर
सोच कुछ बातें मै पल पल हू रोता ,
कि काश कभी ऐसा ये पल नही होता ...

न ही कोई रहनुमा यहाँ , न चितचोर ,
तडपे है मन मेरा जब चीखे कोई ओर
बंद है आंखे मेरी पर दिल नही सोता ,
कि काश कभी मेरा ये दिल नही होता ...

आज हर इन्सां मे छुपा है एक चोर ,
जलता है तन मेरा जब लुटे कोई ओर
क्या मैंने पाया जो मै हू खोता ,
कि काश कभी मै इन्सां नही होता ...

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