Saturday, September 26, 2009

चाँद से ख़फा उसकी, चांदनी को मिलाने आया हू ...

चारो तरफ़ अँधेरा, सब कहते अँधेरी रात है

बात है कुछ और मगर, सब कहते यही बात है

राज की एक बात तुम्हे, मै बतलाने आया हू

चाँद से ख़फा उसकी, चांदनी को मिलाने आया हू

लिपट गई थी चांदनी मुझसे, भूल कर बात सब

इसीलिए तो छाई थी, देखो अँधेरी रात तब

नासमझ चांदनी की तुम्हे, दास्तान सुनाने आया हू

चाँद से ख़फा उसकी, चांदनी को मिलाने आया हू

कह गई वह बात मुझसे, जिसका कोई मतलब न था

बेवफा चाँद भी है, इसका मुझे तलब न था

चाँद संग अँधेरी का रिश्ता, चांदनी को समझाने आया हू

चाँद से ख़फा उसकी, चांदनी को मिलाने आया हू

तुम्हारा रूप संवारने खातिर, चाँद अँधेरी से मिलने जाता है

तुम्हे सबसे बेहतर बनाने मे, वह पन्द्रह दिवस लगाता है

अँधेरी बस जरिया, तुम, चाँद की पूरी मोहब्बत, समझाने आया हू

चाँद से ख़फा उसकी, चांदनी को मिलाने आया हू

मेरी बातो का मतलब शायद, चांदनी को समझ आया था

इसीलिए तो देखो तुम, आज, चाँद पूरा नजर आया था

भूल गम अपने सारे, मै, चांदनी मे रंगजाने आया हू

चाँद से ख़फा उसकी, चांदनी को मिलाने आया हू

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